(The Sin of Snooze: Those Guilty Moments When You Have to Get Up for the Office)
अगर कभी इंसानी दिमाग का कोई पोस्टमार्टम किया जाए, तो सुबह 6:30 बजे उसके अंदर 'उठने' और 'सोने' के बीच जो जंग चल रही होती है, वह एक महाकाव्य की तरह दिखेगी। यह कोई साधारण लड़ाई नहीं है; यह एक ऐसी मनोवैज्ञानिक और शारीरिक उथल-पुथल है जिससे हर कार्यालय-योद्धा को रोज़ गुजरना पड़ता है।
पहला अलार्म बजता है। यह ध्वनि केवल एक अलार्म नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि स्वर्ग खत्म होने वाला है। आंखें अभी भी चिपचिपी पलकों से जकड़ी हुई हैं, पर दिमाग का एक छोटा-सा, जिम्मेदार हिस्सा जाग जाता है। यही वह हिस्सा है जो पूरे साल सिर्फ इसी एक पल के लिए सक्रिय रहता है। बाकी का दिमाग, जो अभी-अभी सपने में अमीर बाप की बेटे वाली भूमिका में था, विद्रोह कर उठता है। और फिर, अंगूठे का एक अवचेतन, रोबोटिक मूवमेंट होता है – SNOOZE।
यह 'स्नूज़' बटन दुनिया का सबसे झूठा वादा है। यह कहता है, "सिर्फ 9 मिनट और।" पर ये 9 मिनट किसी समय-यात्रा से कम नहीं होते। इन 9 मिनटों में आप जो गहरी, अर्थपूर्ण नींद सोते हैं, वह पूरी रात की नींद से भी ज्यादा शक्तिशाली और मीठी होती है। यह वह नींद है जिसमें आप अपना जीवन सफल, सुखी और दफ्तर से दूर देखते हैं।
दूसरा अलार्म एक धोखेबाज़ की तरह बज उठता है। अब अपराधबोध की भावना घर करने लगती है। दिमाग बहाने बनाने लगता है। "कह देता हूँ सर को कि पेट खराब है," या "मोबाइल नेटवर्क डाउन था, इसलिए वर्क फ्रॉम होम नहीं कर पाया।" यहाँ तक कि "आज मेरे हाम्स्टर का जन्मदिन है" जैसे बेतुके बहाने भी दिमाग में उछलने लगते हैं। यह मनोवैज्ञानिक युद्ध का दूसरा चरण है, जहाँ आप खुद को हराने के लिए तैयार कर रहे होते हैं।
फिर अचानक, जीवन की सबसे बड़ी ताकत सक्रिय होती है – मम्मी का डर। चाहे आप 25 के हों या 45 के, माँ की आवाज़ की 'पावर' अलार्म से कहीं ज्यादा प्रभावशाली है। उनका "उठ गए या नहीं?!" का सवाल, दरवाजे की खटखटाहट से मिलकर एक ऐसा 'सुपर-अलार्म' बन जाता है जिसे 'स्नूज़' नहीं किया जा सकता। यह वह पल होता है जब आप समझ जाते हैं कि अब बचाव का कोई रास्ता नहीं है।
अंततः, आप पलंग से उस तरह उतरते हैं जैसे कोई योद्धा थकी हुई लाश की तरह युद्धक्षेत्र से लौट रहा हो। पहला कदम जमीन पर पड़ते ही लगता है कि जीवन कितना क्रूर है। आँखें मलते हुए, टूटे हुए सपनों का मलबा साफ करते हुए, आप बाथरूम की ओर इस उम्मीद से बढ़ते हैं कि शायद ठंडे पानी से चेहरा धोने के बाद, यह 'वयस्क होने का भार' थोड़ा हल्का महसूस हो।
यह कोई दिनचर्या नहीं, यह एक रोजाना की जाने वाली 'तपस्या' है। और इस तपस्या का पहला और सबसे कठोर चरण, वह पाप है... वह गुनाह है... जिसका नाम है –SNOOZE।
Comments
Post a Comment